क्या बदलते तापमान ने इन्हे डुबाया ?
झारखण्ड की मुंडा जाती भी शायद इसी महाद्वीप से होते हुए भारत पहुँची।
द्वारा
डा. नितीश प्रियदर्शी
झारखण्ड की मुंडा जाती भी शायद इसी महाद्वीप से होते हुए भारत पहुँची।
द्वारा
डा. नितीश प्रियदर्शी
जिस
तरह वर्तमान में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पृथ्वी पर कई विनाशकारी बदलाव होने की आशंकाएं
जताई जा रही हैं, उसी तरह प्राचीनकाल में एक बार ऐसा हो चुका है जिसके चलते लेमुरिया
और मु नाम के 2 महाद्वीप जलमग्न हो चुके थे। हालांकि वैज्ञानिक इस पर अभी शोध ही कर
रहे हैं किंतु विश्व के खोजकर्ताओं का दावा है कि इन दोनों महाद्वीपों पर सभ्यता काफी
विकसित थी। कुछ खोजकर्ताओं, जिनमें प्रमुख थे फिलीप स्कोल्टर, का यह भी कहना था कि
मनुष्य की उत्पत्ति इन्हीं महाद्वीपों पर हुई थी। ये दोनों महाद्वीप किसी भू-वैज्ञानिक
हलचल की वजह से समुद्र के भीतर समा गए।
जब
से पृथ्वी बनी है, तब से विनाश के कई चरण हुए हैं तथा कई प्रजातियां विलुप्त हुईं तथा
नई आई भी हैं। विश्व की सभी जातियों एवं धर्मों में प्राचीन महाप्रलय का उल्लेख मिलता
है। केवल धर्म ही नहीं, भू-वैज्ञानिक साक्ष्य भी पृथ्वी पर कई प्राचीन विनाशकारी हलचलों
को दर्शाते हैं चाहे वे भूकंप के रूप में हों या ज्वालामुखी के रूप में या ग्लोबल वॉर्मिंग
या हिमयुग के रूप में हों। आदिम जनजातियों में भी जल महाप्रलय का उल्लेख कहानियों के
रूप में हुआ है। इसी क्रम में इस महाद्वीप का उल्लेख भी प्राचीन तमिल साहित्य में पाया
जाता है।
तमिल लेखकों के
अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास, अफ्रीका महाद्वीप में ना होकर हिन्द महासागर में
स्थित ‘कुमारी कंदम’ नामक द्वीप में हुआ था | हालाँकि कुमारी कंदम या लुमेरिया
को हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी काल्पनिक सभ्यता कहा जाता है | इसे कुमारी नाडु
के नाम से भी जाना जाता है | कुछ लेखक तो इसे रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते
हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला राम सेतु भी इसी महाद्वीप में
पड़ता है |
तमिल
इतिहासकारों के अनुसार इस द्वीप का नाम 'कुमारी कंदम' था। 'कुमारी कंदम' आज के भारत
के दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर में एक खो चुकी तमिल सभ्यता की प्राचीनता को दर्शाता
है। इसे 'कुमारी नाडू' के नाम से भी जाना जाता है। तमिल शोधकर्ताओं और विद्वानों के
एक वर्ग ने तमिल और संस्कृत साहित्य के आधार पर समुद्र में खो चुकी उस भूमि को पांडियन
महापुरुषों के साथ जोड़ा है। तमिल पुनर्जागरणवादियों के अनुसार 'कुमारी कंदम' के पांडियन
राजा का पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन था। दक्षिण भारत के लोकगीतों में इतिहास
के साथ उस खो चुकी इस सभ्यता का वर्णन मिलता है। नतीजतन, जब इसके बारे में जानकारी
देने वाले खोजकर्ता भारत के नगरों में पहुंचे, तब इस लोकगीत और कथा को बल मिला।
तमिल
लेखकों के अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप में न होकर हिन्द महासागर
में स्थित 'कुमारी कंदम' नामक द्वीप में हुआ था। हालांकि 'कुमारी कंदम' या लुमेरिया
को हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी काल्पनिक सभ्यता कहा जाता है। कुछ लेखक तो इसे
रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला
राम सेतु भी इसी महाद्वीप में पड़ता है।
तमिल साहित्य के
अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में कुमारी कंदम नाम की एक तमिल सभ्यता थी , जो कि अब हिन्द
महासागर में विलुप्त हो चुकी है | इसी महाद्वीप को Lemuria नाम इंग्लिश भूगोलवेत्ता
फिलिप स्क्लाटर (Philip Sclater) ने 19 वीं सदी में दिया था | सन 1903 में
V.G. सूर्यकुमार ने इसे सर्वप्रथम Kumarinatu" ("Kumari Nadu") या कुमारी
क्षेत्र का नाम दिया था | कहा जाता है की यह कुमारी कंदम ही रावण के देश ‘लंका’
का विस्तृत स्वरुप है जो कि वर्तमान भारत से भी बड़ा था ।
हिन्द महासागर
में एक बहुत बड़े महाद्वीप की संभावना को सबसे पहले ब्रिटिश भूगोलवेत्ता फिलिप स्क्लाटर
(Philip Sclater) ने बताया था | उन्होंने मेडागास्कर और भारत में बहुत बड़ी मात्रा
में वानरों के जीवाश्मों (Lemur Fossils) के मिलने पर यहाँ एक नयी सभ्यता के होने
का अंदेशा व्यक्त किया था | उन्होंने ही इसे ‘लेमुरिया ‘ नाम दिया था | उन्होंने इस
विषय पर एक किताब भी लिखी जिसका नाम ‘The
Mammals of Madagascar’ था, जो कि 1864 में प्रकाशित हई थी |
भूगोलवेत्ता A.R. वासुदेवन के उन्नत अध्ययन के अनुसार, मानव
सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप में ना होकर कुमारी हिन्द महासागर के ‘कुमारी नामक'
द्वीप पर हुआ था | उनके अध्ययन कहते हैं कि आज से लगभग 14,000 साल पहले जब कुमारी
कंदम जलमग्न हो गया तो लोग यहाँ से पलायन कर अफ्रीका, यूरोप, चीन सहित पूरे विश्व में
फैल गए और कई नयी सभ्यताओं को जन्म दिया |
ऐसा माना जाता है कि हिम युग के अंतिम सालों में तापमान
बढ़ना शुरू हो गया था जिसके कारण ग्लेशियरों का पिघलना शुरू हुआ और समुद्र का जल
स्तर बहुत बढ़ गया और अंततः यह सभ्यता पानी में डूब गयी |
आज सारे विश्व
के वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं की आने वाले समय में पृथ्वी पर कई विनाशकारी बदलाव होंगे। कारन है
ग्लोबल वार्मिंग । कई छोटे द्वीप समुद्र में समां जायंगे । कहीं सूखे की
मार होगी तो कहीं अतिवृष्टि । कई नए जगह भूकंप प्रभावित होंगे जो पहले नही
थे । यानि विनाश का एक नया रूप सामने आएगा।
विनाश अगर होगा भी तो अचानक नही । विनाश की प्रक्रिया धीरे धीरे होती है जैसे पहले हुई थी । जब से पृथ्वी बनी है विनाश के कई चरण हुए है जब कई प्रजातियाँ विलुप्त हुई तथा नई आई हैं। विश्व के सभी जातिओं एवं धर्मो में प्राचीन महाप्रलय का उल्लेख मिलता है । केवल धर्मं ही नही भूवैज्ञानिक साक्ष्य भी पृथ्वी पर कई प्राचीन विनाशकारी हलचल को दर्शाता है। चाहे वो भूकंप के रूप मे हो या ज्वालामुखी के रूप मे या ग्लोबल वार्मिंग या हिमयुग के रूप मे हो। विश्व के सभी धर्मो में जल को ही महाप्रलय का कारण माना गया है। यहाँ तक की सभी आदिम जन जातिओं मे भी जल महाप्रलय का उल्लेख कहानिओं के रूप में हुआ है।इसी क्रम में दो महाद्वीपों का नाम उभर कर आता है जो आज महासागर के नीचे है। इनका नाम है "लेमुरिया एवं मु”। वेसे इन द्वीपों का अभी तक वेज्ञानिक पुष्टि नही हो पाई है। लेकिन विश्व के खोजकर्ताओं का दावा है की यह दोनों महाद्वीप पर सभ्यता काफी विकसित थी। कुछ खोजकर्ताओं, जिनमे प्रमुख थे फिलिप स्कोल्टर , का यह भी कहना था की मनुष्य की उत्पत्ति इन्ही महाद्वीपों पर हुई थी। ये दोनों महाद्वीप किसी भूवैज्ञानिक हलचल के वजह से समुद्र के भीतर समां गए। १८६४ में जन्तुविज्ञानी श्री फिलिप स्केलटर ने एक लेख लिखा " मैडागास्कर के स्तनधारी " इस लेख में उस जीवाश्म की चर्चा की गई थी जो मैडागास्कर तथा भारत में पाए गए। इनको इस बात का आश्चर्य की ये जीवाश्म अफ्रीका या मध्य पूर्व में नहीं पाये गए। तब उन्होंने माना की भारत और मैडागास्कर एक ही बड़े महाद्वीप के अंश थे। तमिल साहित्य में इस महाद्वीप का जिक्र बार बार हुआ है। इसमें प्रमुख है "कुमारी कंदम" जिसको कुमारी नाडु भी कहते हैं जिसका अर्थ है “डूबता महाद्वीप”। इस साहित्य में लेमुरिया महाद्वीप का जिक्र कई बार हुआ है।
विनाश अगर होगा भी तो अचानक नही । विनाश की प्रक्रिया धीरे धीरे होती है जैसे पहले हुई थी । जब से पृथ्वी बनी है विनाश के कई चरण हुए है जब कई प्रजातियाँ विलुप्त हुई तथा नई आई हैं। विश्व के सभी जातिओं एवं धर्मो में प्राचीन महाप्रलय का उल्लेख मिलता है । केवल धर्मं ही नही भूवैज्ञानिक साक्ष्य भी पृथ्वी पर कई प्राचीन विनाशकारी हलचल को दर्शाता है। चाहे वो भूकंप के रूप मे हो या ज्वालामुखी के रूप मे या ग्लोबल वार्मिंग या हिमयुग के रूप मे हो। विश्व के सभी धर्मो में जल को ही महाप्रलय का कारण माना गया है। यहाँ तक की सभी आदिम जन जातिओं मे भी जल महाप्रलय का उल्लेख कहानिओं के रूप में हुआ है।इसी क्रम में दो महाद्वीपों का नाम उभर कर आता है जो आज महासागर के नीचे है। इनका नाम है "लेमुरिया एवं मु”। वेसे इन द्वीपों का अभी तक वेज्ञानिक पुष्टि नही हो पाई है। लेकिन विश्व के खोजकर्ताओं का दावा है की यह दोनों महाद्वीप पर सभ्यता काफी विकसित थी। कुछ खोजकर्ताओं, जिनमे प्रमुख थे फिलिप स्कोल्टर , का यह भी कहना था की मनुष्य की उत्पत्ति इन्ही महाद्वीपों पर हुई थी। ये दोनों महाद्वीप किसी भूवैज्ञानिक हलचल के वजह से समुद्र के भीतर समां गए। १८६४ में जन्तुविज्ञानी श्री फिलिप स्केलटर ने एक लेख लिखा " मैडागास्कर के स्तनधारी " इस लेख में उस जीवाश्म की चर्चा की गई थी जो मैडागास्कर तथा भारत में पाए गए। इनको इस बात का आश्चर्य की ये जीवाश्म अफ्रीका या मध्य पूर्व में नहीं पाये गए। तब उन्होंने माना की भारत और मैडागास्कर एक ही बड़े महाद्वीप के अंश थे। तमिल साहित्य में इस महाद्वीप का जिक्र बार बार हुआ है। इसमें प्रमुख है "कुमारी कंदम" जिसको कुमारी नाडु भी कहते हैं जिसका अर्थ है “डूबता महाद्वीप”। इस साहित्य में लेमुरिया महाद्वीप का जिक्र कई बार हुआ है।
हाल के वर्षो में मॉरिशस के
पास हिन्द महासागर के नीचे एक
खोया महाद्वीप पाया
गया। ये प्राचीन महाद्वीप जो कभी
भारत और मेडागास्कर के बीच में
फैला हुआ था,
अब हिंद महासागर के तल पर
बिखरा हुआ है।
ये प्राचीन महाद्वीप, जिसे मॉरिटिया के
नाम से जाना
जाता है, एक
बार गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट के दौरान मेडागास्कर को भारत से
जोड़ता था।
एक रोचक
तथ्य यह सामने उभर कर सामने आया है की हमलोग की आगे की पीढ़ी शायद फिर
लेमुरिया द्वीप पर वास करे। खोजकर्ताओं का मानना है की जिस तरीके से लेमुरिया
द्वीप समुद्र के अन्दर समां गया शायद भविष्य मैं किसी प्लेट टेक्टोनिक
या किसी भूगर्भीय हलचल की वजह से यह द्वीप समुद्र के ऊपर आ जाए। एक
और रोचक तथ्य सामने यह आया है की लेमुरिया द्वीप के लोग काफ़ी लंबे होते थे।
उनके पास तीसरा आँख भी था जो सर के पीछे होता था। यही आँख आज के मनुष्य
में पीनियल नेत्र (pineal eye) के नाम से जाना जाता है। इसका अब कोई कम
नही है। लेकिन इसपर अभी कोई खोज नही हुआ है।एसा माना जाता है की
लेमुरिया महाद्वीप हिंद महासागर के नीचे एवं मु महाद्वीप
प्रशांत महासागर के नीचे समा गया। खोजकर्ताओं की माने तो "मु"
महाद्वीप ५०,००० वर्ष पहले तक था एवं "लेमुरिया द्वीप"
की उत्पत्ति एक लाख साल पहले हुई थी।ऐसा लगता है जिस वक्त ये दोनों महाद्वीप
समुद्र के नीचे समाये उस वक्त पृथ्वी का तापमान आज के तुलना में ज्यादा
रहा होगा जिसके चलते हिमनदों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर ऊँचा उठा
एवं इन दोनों महाद्वीपों को धीरे धीरे अपने भीतर समां लिया। वेसे भी आज के
बढ़ते तापमान की वजह से विश्व के कई छोटे छोटे द्वीप खतरें मैं आ गए है।
पहले
भी हमारे पृथ्वी पर कई बदलाव हुए आज जहाँ पर सुखी जमीन है वहां पहले
समुद्र हुआ करता था। आज जहाँ रेगिस्तान है वहां पहले हरियाली हुआ करती
थी। पृथ्वी पर प्राचीन काल के जिओलोजिकल विनाश के अवशेष आज भी मिलते है
। एल्फ्रेड रसेल एवं एर्नेस्ट हेकेल का मानना था की मनुष्य की उत्पत्ति इन
महाद्वीपों पर हुई थी। लेमुरिया शब्द लेमूर नामक जीव से आया जो बन्दर एवं
गिलहरी का मिश्रित रूप है। लेमूर का मूल स्थान मेडागास्कर है लेकिन यह भारत
एवं मलाया मे भी पाया जाता है। इसलिये यह माना गया की ये जीव तभी भारत पहुंचें
होंगे जब कोई विशाल महाद्वीप हिंद महासागर में रहा होगा एवं जो भारत
एवं मेडागास्कर के बिच में सेतु का काम किया।
वैज्ञानिक मानते हैं की भारत उप महाद्वीप में किसी नर-वानर की उत्पत्ति नही हुई थी। अतः जितनी भी जातियां भारत की धरती पर जीवित हैं या लुप्त हो चुकीं हैंउनका मूल स्थान कहीं न कहीं भारत से बाहर रहा था। झारखण्ड के मुंडाओं के मूल स्थान तथा उनके आव्रजन मार्ग की खोज में लेमुरिया सिद्धांत का उल्लेख हुआ है। एस सी रॉय ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। श्री रॉय ने दक्षिण अफ्रीका एवं दक्षिण भारत के बिच एक लेमुरिया द्वीप की कल्पना की है जो अब जलमग्न हो चुका है। उन्होंने संभावना व्यक्त की है की मुंडा जाती लेमुरिया द्वीप से होती हुए भारत आई थी। इस प्रसंग में दक्षिण अफ्रीका के मेडागास्कर का नाम उल्लेखित हुआ है। इस मत के अनुसार मुंडाओं का मूल स्थान मेडागास्कर है और भारत आव्रजन "लेमुरिया द्वीप" से होते हुए हुआ है। अब सवाल यह उठता है की अगर यह दोनों महाद्वीप थे तो ये समुद्र में कैसे समा गए। क्या समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने इनको अपने अन्दर समा लिया या किसी भुवेज्ञानिक हलचल के चलते यह महासागर के अन्दर चले गए । अभी भी इसपर खोज जारी है।सवाल लेमुरिया या मु का नहीं है । सवाल यह है की अगर पृथ्वी का तापमान यूँ ही बढ़ता रहा तो आने वाले समय में कोई दूसरा लेमुरिया या मु जैसी घटना होने से इंकार नही किया जा सकता।
वैज्ञानिक मानते हैं की भारत उप महाद्वीप में किसी नर-वानर की उत्पत्ति नही हुई थी। अतः जितनी भी जातियां भारत की धरती पर जीवित हैं या लुप्त हो चुकीं हैंउनका मूल स्थान कहीं न कहीं भारत से बाहर रहा था। झारखण्ड के मुंडाओं के मूल स्थान तथा उनके आव्रजन मार्ग की खोज में लेमुरिया सिद्धांत का उल्लेख हुआ है। एस सी रॉय ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। श्री रॉय ने दक्षिण अफ्रीका एवं दक्षिण भारत के बिच एक लेमुरिया द्वीप की कल्पना की है जो अब जलमग्न हो चुका है। उन्होंने संभावना व्यक्त की है की मुंडा जाती लेमुरिया द्वीप से होती हुए भारत आई थी। इस प्रसंग में दक्षिण अफ्रीका के मेडागास्कर का नाम उल्लेखित हुआ है। इस मत के अनुसार मुंडाओं का मूल स्थान मेडागास्कर है और भारत आव्रजन "लेमुरिया द्वीप" से होते हुए हुआ है। अब सवाल यह उठता है की अगर यह दोनों महाद्वीप थे तो ये समुद्र में कैसे समा गए। क्या समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने इनको अपने अन्दर समा लिया या किसी भुवेज्ञानिक हलचल के चलते यह महासागर के अन्दर चले गए । अभी भी इसपर खोज जारी है।सवाल लेमुरिया या मु का नहीं है । सवाल यह है की अगर पृथ्वी का तापमान यूँ ही बढ़ता रहा तो आने वाले समय में कोई दूसरा लेमुरिया या मु जैसी घटना होने से इंकार नही किया जा सकता।