Wednesday, April 15, 2020

कोरोना का डर पहुंचा रहा है पर्यावरण को फायदा ?

प्रकृति अपनी मरम्मत खुद करती नजर आ रही है। 

डा नितीश प्रियदर्शी
पर्यावरणविद एवं प्रोफेसर भूगर्भ विज्ञानं विभाग, रांची विश्वविद्यालय।



मनुष्य इस पृथ्वी पर रहने वाला एकमात्र ऐसा जीव है जो की पृथ्वी के तमाम संसाधनों का बेतरतीब तरीके से दोहन करता है। एक वक्त ऐसा था जब इस पृथ्वी पर इंसान तो थे लेकिन वे एकदम सीमित संख्या और स्थान पर निवास करते थे जिसके कारण पृथ्वी का समन्वय बना हुआ था परन्तु समय के साथ खेती की खोज हुयी और मनुष्यों ने एक स्थान पर रहना शुरू कर दिया और उद्योगों आदि की स्थापना की। विभिन्न धातुओं के खोज के साथ ही मनुष्य की महत्वाकांक्षा बढती चली गयी और मनुष्यों ने पृथ्वी का दोहन शुरू किया इसी दोहन के कारण मौसम के कई परिवर्तन आये जिसने हजारों बीमारियों को जन्म दिया इन्ही बीमारियों ने महामारी का रूप ले लिया। उद्योगीकरण और वैश्वीकरण ने खाद्य से लेकर जल तक को अशुद्ध कर दिया जिसने बीमारियों को निमंत्रण देने का कार्य किया।
इसने ही मनुष्यों पर बल्कि जानवरों और जीवों पर भी एक बहुत ही गहरा प्रभाव डाला। जनसँख्या बढ़ने के कारण मनुष्य जीवों का शिकार बड़ी संख्या पर करने लगा जिससे कई प्रजातियां विलुप्त हो गयी जिनका एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण योगदान हुआ करता था पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में। मनुष्यों की इस आक्रामकता ने जीवों के साथ साथ वनस्पति और पारिस्थितिकी को इतना नुक्सान पहुचाया है जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। वर्तमान समय में कोरोना ने पूरे विश्व भर में एक अत्यंत ही घातक महामारी का रूप ले लिया है। इस महामारी के चलते आज विश्व भर के तमाम देश पूर्ण रूप से बंद कर दिए गए हैं तथा वहां पर कर्फ्यू लगा दिया गया है। इस कर्फ्यू के लगते लोगों का बाहर निकलना बंद हो चुका है। उद्योग बंद हो चुके हैं तथा शिकार आदि भी ख़त्म हो चुके हैं। इस महामारी के चलते दुनिया भर के पर्यावरण पर एक साफ प्रभाव देखने को मिल रहा है और यह प्रभाव है पर्यावरण के हित में।
कोविड-19 के कारण दुनिया के कई हिस्सों में लॉकडाउन के कारण ना केवल शहरों में प्रकृति की छटा फैली है बल्कि खुद धरती के सीस्मिक कंपन भी कम हो गए हैं।  बेल्जियम की रॉयल ऑब्जर्वेट्री के विशेषज्ञों के अनुसार, विश्व के कई हिस्सों में जारी लॉकडाउन के कारण धरती की ऊपरी सतह पर कंपन कम हुए हैं।  भूकंप वैज्ञानिक यानि सीस्मोलॉजिस्ट को धरती के सीस्मिक नॉयज और कंपन में कमी देखने को मिली है।‘सीस्मिक नॉयज'  वह शोर है जो धरती की बाहरी सतह यानि क्रस्ट पर होने वाले कंपन के कारण धरती के भीतर एक शोर के रूप में सुनाई देता है। इस साउंड को सटीक तौर पर मापने के लिए रिसर्चर और भूविज्ञानी एक डिटेक्टर की रीडिंग का सहारा लेते हैं जो कि धरती की सतह से 100 मीटर की गहराई में गाड़ा जाता है। लेकिन फिलहाल धरती की सतह पर कंपन पैदा करने वाली इंसानी गतिविधियां काफी कम होने के कारण इस साउंड की गणना सतह पर ही हो पा रही है।
24 मार्च से भारत में लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश के कई हिस्सों में भी इंसानी गतिविधियों की रफ्तार थमी है और इस दौरान प्रकृति अपनी मरम्मत खुद करती नजर आ रही है।  पंजाब के जालंधर में रहने वालों ने बीते दिनों ऐसी तस्वीरें साझा की हैं जिनमें वहां से लोगों को हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिख रहीं हैं।
दुनिया भर में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या सवा छह लाख के करीब पहुंच चुकी है। कई देशों में पूरी तरह लॉकडाउन है। भारत समेत दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या अपने घरों में कैद है। लॉकडाउन के बीच आर्थिक नुकसान जरूर हो रहा है। इस बीच एक सुकून भरी खबर भी है। गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगने और ज्यादातर कारखानें बंद होने के बाद दुनिया समेत देश के कई शहरों की हवा की क्वालिटी में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है। जिन शहरों की एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI खतरे के निशान से ऊपर होते थे। वहां आसमान गहरा नीला दिखने लगा है। तो सड़कों पर वाहन चल रहे हैं और ही आसमां में हवाई जहाज। बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों जैसे अन्य क्षेत्रों में भी बड़ी गिरावट आई है। इससे वातावरण में डस्ट पार्टिकल के बराबर हैं और कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन भी सामान्य से बहुत अधिक नीचे गया है। इस तरह की हवा मनुष्यों के लिए बेहद लाभदायक है। अगर देखा जाये तो झारखण्ड के भी  शहरों में इस लॉक डाउन का प्रभाव दिखा रहा है।  तापमान ज्यादा होने पे भी उतनी गर्मी नहीं लग रही है जितनी पिछले साल थी। बता दें कि कई महीनों से झारखण्ड  में वाहन प्रदूषण के खिलाफ जांच अभियान चलाया जा रहा था।  जगह-जगह दोपहिये एवं चार पहिये वाहनमिनी बस और टेंपू समेत विभिन्न कॉमर्शियल वाहनों के प्रदूषण स्तर को चेक किया जा रहा था और निर्धारित मात्रा से अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर कार्रवाई की जा रही थी।  इसके बाद भी तो वाहनों द्वारा छोड़े जा रहे प्रदूषणकारी गैसों की मात्रा कम हो रही थी और ही वायु प्रदूषण में कमी रही थी।  लेकिन, कोरोना के भय से सड़क पर चलने वाले वाहनों की संख्या में आयी भारी गिरावट आने के कारण पिछले सात-आठ दिनों से इसमें काफी सुधार दिखता है।  वाहनों की आवाजाही होने से सड़कों से अब धूल के गुबार नहीं उठ रहे हैं। झारखण्ड का एयर क्वालिटी इंडेक्स वायु प्रदुषण के कम हो जाने से  ५० - ७० के बीच गया है जो पिछले साल १५० से २५० तक रहता था।  ये हवा मनुष्य के स्वस्थ लिए फायदेमंद है।  वायु और धुल प्रदुषण के काफी कम हो जाने से आसमन में रात को सारे तारे दिखा रहे हैं जो पहले नहीं दीखते थे। ध्वनि प्रदुषण तो इतना कम है की आपकी आवाज दूर तक सुनाई दे रही है। चिड़ियों का चहचहाना सुबह से ही शुरू हो जा रहा है।  कुछ ऐसी भी चिड़ियाँ नज़र रही हैं जो पहले कम दिखती थीं।





इस लॉक डाउन से एक और बड़ा फायदा नदियों को होगा।  हर साल प्रदूषित रहने वाली नदियां अब खुल के सांस ले पा रही होंगी।  पेड़ एवं फूल पौधे भी खुल के सांस ले रहे होंगे क्योंकि उनके पत्तों पे अब कोई धुल कण नहीं बैठ रहा होगा। आने वाले मौसम पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।  तापमान हो सकता है की औसत से कम हो।  गाड़ियों और फैक्टरियों के बंद होने से ग्रीन हाउस गैस जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है का उत्सर्जन भी नहीं के बराबर होगा।  
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च के अनुसार, कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण दिल्ली में पीएम 2.5 में 30 फीसद की गिरावट आई है। अहमदाबाद और पुणे में इसमें 15 फीसद की कमी आई है।नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) प्रदूषण का स्तर, भी कम हो गया है। एनओएक्स प्रदूषण मुख्य रूप से ज्यादा वाहनों के चलने से होता है। एनओएक्स प्रदूषण में पुणे में 43 फीसद, मुंबई में 38 फीसद और अहमदाबाद में 50 फीसद की कमी आई है।
उम्मीद कर सकते हैं कि एक-दो माह में जब तक देश-दुनिया में कोरोना का असर कम होगा, तब तक प्रकृति और भी ज्यादा साफ-सुथरी, खिली-खिली और अधिक महकी-महकी नजर आएगी। उम्मीद यह भी है कि मनुष्य भी कुछ सीख लेगा इन परिवर्तनों से। आशा है कि वह अपने संगी-साथियों यानी जल जंगल जमीन और पर्यावरण के अन्य अंगों के प्रति समभाव रखेगा। प्रकृति से उसे दोस्ती करनी होगी। तभी असली मायनों में बहारें लौटेंगी।