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Sunday, April 27, 2008
क्या प्राचीन मनुष्य ने भी की थी अंतरिक्ष की सैर
क्या प्राचीन मनुष्य ने भी की थी अंतरिक्ष की सैर ।
द्वारा
नीतिश प्रियदर्शी
हाल मे रूस की समाचार संस्थान 'प्राव्दा ' ने एक बयां जरी कर सनसनी फेल दी की जब अमेरिका का यान अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर पहली बार जब चंद्रमा के सतह पर उतरा तो वहाँ पर पहेले से कोई मोजूद था । यहीं नहीं उन लोगों ने (एलिएंस) अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को वापस जाने का इशारा किया। अब सवाल यह उठता की क्या चन्द्रमा पर या अंतरिक्ष मे जाने वाले यात्रियों में आधुनिक मानव ही प्रथम थे या उनसे पहले भी लोग वहाँ जो चुके हैं, चाहे इस पृथ्वी से या दुसरे ग्रहों से।
आज विश्व के कई प्राचीनतम लेखों में अंतरिक्ष यात्राओं का विस्तार से वर्णन मिलता हैं। वैसे आधुनिक विज्ञान इनकी सत्यता पर प्रश्नचिह्न लगता है । लेकिन जिस तरीके से इनका वर्णन किया गया हैं उससे तो लगता हैं इन लेखों पर विश्वास न करने का कोई कारन नहीं हैं।
आज से कई वर्ष पहले जब लोग मानवनिर्मित सॅटॅलाइट तथा अंतरिक्ष यान के बारे मे बात भी नहीं करते थे उस वक्त अंग्रेज विद्वान जेम्स चर्च्वार्ड ने इन यानों का जिक्र अपने लेख में किया।
विश्व के विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में अंतरिक्ष विमान एवं यात्रा का वर्णन काफी विस्तार से मिलता हैं।
तिब्बत के सुदूर उत्तर में सिंग नु की राजधानी के अवशेष की खोज सन १७२५ में की गई थी। इन अवशेषों में एक पिरामिड, एक शाही महल तथा एक सिंहासन जिसपर चन्द्रमा एवं सूर्य के चित्र के अलावा एक दूधिया रंग का पत्थर भी पाया गया।
१९५२ मैं सोविअत खोजी दल को वहाँ से एक प्राचीन दास्तावेज मिला जिसमे इस दूधिया पत्थर को चन्द्रमा से लाया गया दिखाया गया है।
क्या प्राचीन कल में वास्तव में मनुष्य चन्द्रमा पर गया था? क्या उस वक्त के लोग अंतरिक्ष में आसानी से जा सकते थे।
भारत के प्राचीन 'सूर्य सिद्धांत' में इस बात का रोचक वर्णन मिलता है की उस वक्त के दार्शनिक तथा वैज्ञानिक चन्द्रमा के नीचे एवं बादलों के ऊपर पृथ्वी के चारों ओर भ्रमण करते थे।
भारत के प्राचीन संस्कृत लेखों में ऐसे वाहनों का वर्णन मिलता है जो पृथ्वी के चारों ओर घूमते हैं। ये हवा से अपने इंधन का इंतजाम कर लेते थे। ये पृथ्वी का उस वक्त तक चक्कर लगाते जब तक कोई गतिरोध न हो।
सुमेर सभ्यता की चित्र लिपि में भी एक खास तरह की वस्तु का वर्णन मिलता है जो रॉकेट की तरह लगता है।
दक्षिण अमेरिका के पेरू में चीनी मिट्टी का बना हुआ एक खास तरह का यान मिला है जो एक अंतरिक्ष कैप्सूल की तरह दिखता है।
उसी तरह जापान में कुछ ऐसे चित्रों की खोज हुई है जिसमे लोगों को अंतरिक्ष के वस्त्र पहने हुए दिखाए गये है तथा उन्हें ऐसे हेलमेट में दिखाया गया है जो उनके पूरे सिर को ढँक लेता है।
ग्वाटेमाला देश के प्राचीन लेख में एक ऐसे सुनहरे रथ का वर्णन मिलता है जो तारों तक पहुँच सकता है।
ग्रीस के लुसियाना चित्र में चन्द्रमा को पृथ्वी की तरह बताया गया है तथा इस बात का भी वर्णन है की चन्द्रमा पर पहुँचने में आठ दिन लगते हैं ।
इसी तरह तिब्बत एवं मंगोल के बौद्ध किताबों में ऐसे मशीनों का जिक्र हुआ है जो तारों तक जा सकता है।
महाभारत में ऐसे रथ का विवरण मिलता है जो दो तल्ले का है तथा यह आग के शोले के साथ आकाश की तरफ़ बढ़ जाता है तथा दूर होने पर धूमकेतु की तरह दिखता है।
आज विज्ञान इन तथ्यों को माने या न माने किंतु इतना जरुर है की प्राचीन सभ्यता के लोग अंतरिक्ष एवं चन्द्रमा के बारे में विशेष जानकारी रखते थे।
डॉक्टर नीतिश प्रियदर्शी
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