Thursday, June 5, 2008

शनि ग्रह- धार्मिक एवं वेज्ञानिक दृष्टिकोण से

शनि ग्रह - धार्मिक एवं वेज्ञानिक दृष्टिकोण से


- डा नीतिश प्रियदर्शी


शनि ग्रह का नाम आते ही लोगों में भय व्याप्त हो जाता है। इसके प्रभाव को आज भारत के सभी न्यूज़ चैनल प्रमुखता से दिखा रहें हैं। प्राचीन काल से ही शनि ग्रह के बारे मैं विभिन्न विचार रखे गएँ हैं। हिंदू धर्मं मैं शनि ग्रह के बारे मैं बहुत कुछ लिखा गया है ।


शनि सूरज से ६ वें स्थान पर हैं और पूरे ब्रह्माण्ड में बृहस्पति के बाद सबसे विशाल ग्रह है । कहने को तो बृहस्पति सबसे विशाल ग्रह है लेकिन शनि ग्रह के पास सबसे ज्यादा उपग्रह है । इसके उपग्रहों की संख्या ५० से भी अधिक है यानि इस मामले मैं शक्तिशाली है।


धर्मं मैं अपने मंद गति से चलने के कारन इसका नाम "शनेचर" रखा गया। आधुनिक विज्ञान मैं भी यह मान्यता है की सूर्य से दूर होने के कारन यह सूर्य की परिक्रमा करने मैं काफी वक्त लगता है। इसका परिक्रमा पथ लगभग १४ करोड़ २९ लाख किलोमीटर लंबा है तथा सूर्य की एक परिक्रमा करने में इसे २९ १/२ वर्ष लगते हैं।


बृहस्पति की तरह शनि भी ७५ प्रतिशत हाइड्रोजन और २५ प्रतिशत हीलीयम से बना है।


धर्मं मैं शनि को सूर्यपुत्र माना गया है। इसका अर्थ है सूर्य से उत्पत्ति। यदि विज्ञान के नजर से देखा जाए तो शनि ही क्यों सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। ज्योतिष में शनि को सूर्य का शत्रु माना गया है शायद इसलिये, की अन्तरिक्ष मैं यह सूर्य से से काफी दूर है । शनि को प्रसन्न करने के लिये लोग नीले रंग का पत्थर (नीलम ) धारण करतें हैं। शनि ग्रह के रंग को अगर देखा जाए तो यह कभी हल्का हरा , पीला या नीला रंग देता है। इसका उत्तरी ध्रुव का रंग काफी नीला है।


ज्योतिष विद्या के अनुसार जो लोग शनि के कुप्रभाव में हैं उन्हें शनि के मन्दिर में तेल दान करने की सलाह दी जाती है। तेल की किल्लत से जहाँ पृथ्वी वासी परेशां हैं वहीं शनि के उपग्रह Titan पर तेल की बारिश हो रही है। नासा द्वारा शनि अभियान पर भेजे गए अंतरिक्ष यान "केसिनी " से मिले ताजा जानकारी के अनुसार Titan पर तरल हाइड्रोकार्बन के इतने अकूत भंडार मौजूद हैं की जितने पृथ्वी पर भी नहीं मिलते। तेल की बारिश के चलते यहाँ हाइड्रोकार्बन एवं मिथेन प्रचुर मात्र में जमा हो चुके हैं।


तो क्या प्राचीन लोगों को इसके बारे में जानकारी थी?


शनि से प्रभावित लोगों को अंगुली में लोहे का छल्ला धारण करने को कहा जाता हैं। इसमे भी कुछ समानता दिखती है। शनि ग्रह के चारों और कई छल्ले हैं। यह छल्ले बहुत पतले हैं एवं इसकी मोटाई एक किलोमीटर से भी कम हैं। इन छल्लो के कण मुख्यता बर्फ एवं बर्फ से ढंके पथरीले पदार्थों से बने हैं। शायद इसी संरचना को देखते हुए लोगों को लोहे का छल्ला अंगुली में धारण करने के लिये राय दी गई ।


शनि ग्रह के बारे में एक रोचक जानकारी यह हैं की इतना विशाल होने के बावजूद यह ग्रह घनत्व के मामले में पानी से भी कम हैं यानि काफी हल्का।


इन सारे तथ्यों पर यदीं हम ध्यान दें तो लगता हैं की प्राचीन काल में लोग भी अंतरिक्ष एवं शनि ग्रह के बारे में अच्छी जानकारी रखते थे ।

No comments:

Post a Comment