Tuesday, June 28, 2016

वर्षा जल संचयन में जरुरी है कुछ सावधानियाँ।


रांची में वर्षा जल संचयन पर एक रिपोर्ट।
द्वारा
डा नितीश प्रियदर्शी
भूवैज्ञानिक

वर्षा जल संचयन ( वाटर हार्वेस्टिंग ) वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। झारखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से १६० बीसीएम की पुन: प्राप्ति हो सकती है। इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। रांची में भी सरकार की तरफ से वर्षा जल संचयन क़ो अनिवार्य किया गया है।  वर्षा जल संचयन विधि को अपनाने से पहले कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है वर्ना ये सफल नहीं होगा।

१. क्या रांची शहर का भूवैज्ञानिक सर्वे हुआ की कौन सा स्थान उपयुक्त है वाटर हार्वेस्टिंग के लिए ?  क्योंकि रांची की चट्टानें अपरदित और कायांतरित है और कई जगह  तो हार्ड रॉक है और छिद्र युक्त  भी नहीं है जो भूमिगत वर्षा जल संचयन के लिए उपयुक्त नहीं है।  दो साल पहले जिन लोगो ने वर्षा जल संचयन की विधि अपनाई थी इस वर्ष वो काम नहीं किया। 

रांची की चट्टानें दूसरे राज्यों की चट्टानों से अलग हैं खासकर दक्षिण भारत एवं उत्तर भारत की।  इसलिए जो विधि वहाँ अपनाई जाती है ठीक वैसा ही यहाँ नहीं अपनाया जा सकता।  नगर निगम को चाहिए था आपने टीम में हाइड्रो जियोलॉजिस्ट को जरूर रखते जो यहाँ के चट्टानों से परिचित हो।  हार्ड रॉक में अप्राकृतिक तरीके से वाटर रिचार्ज करना एक महंगा और आसान काम नहीं है।  अगर गलती से भी सतह का प्रदूषित जल भूमिगत जल से मिला तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी।  क्योंकि यही एक जल का स्रोत है जिसमे कम प्रदुषण है।  नहीं तो जिस तरीके से झारखण्ड के भूमिगत जल में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक का जहर कुछ जगहों पर  है उसी तरीके से कई जगहों पर प्रदुषण फैलेगा।  क्योंकि यहाँ अभी भी लोगों में जागरूकता की कमी है। हो सकता है कुछ लोग गलती से अगर इसमें गन्दा पानी  डाल दिए तो आप सहज अनुमान लगा सकते हैं की स्थिति क्या होगी।

२. रांची में कौन कौन से क्षेत्र वाटर रिचार्ज जोन है लोगों को जानना जरुरी है। 

३. रांची के लगभग सभी घरों में सेप्टिक टैंक है तथा बाथरूम के पानी का अलग सोख्ता है। और अब रिचार्ज पीट भी बनाना है।  ये लोगों को जानना जरुरी है की रिचार्ज पीट और सेप्टिक टैंक के बीच दुरी कम से कम २० फ़ीट होनी चाहिए।  वैसे ही सोख्ता और रिचार्ज पिट की दुरी भी २० फ़ीट होनी चाहिए नहीं तो भूमिगत जल प्रदूषित हो जायेगा। अगर एक बार भूमिगत जल प्रदूषित हुआ तो फिर वो ठीक नहीं होगा और दूसरे स्रोत को भी प्रभावित करेगा।

४. रिचार्ज पिट घर के नींव से दूर होनी चाहिए।

५.  रिचार्ज पिट की सफाई साल में कम से कम तीन बार होनी चाहिए अन्यथा ये काम नहीं करेगा।

६. बारिश का जल अपने साथ वातावरण से तथा छतों से कुछ प्रदुषण लेके भी आता है इसपर ध्यान देना अत्यधिक जरुरी है।  छत के ऊपर लोग बहुत तरह के धातु, प्लास्टिक, और कई तरह के कचरे जमा किये रहते हैं जिनके संपर्क में आने से वर्षा जल प्रदूषित होता है।  इनमे प्रमुख है pH में बदलाव , नाइट्रेट, फॉस्फोरस , एवं भारी धातु। अगर इनपर ध्यान नहीं दिया गया तो छत पानी नीचे जा के भूमिगत जल को प्रदूषित करेगा। 

७. शोध से ये ज्ञात हुआ की हार्वेस्टेड  जल को सीधे नहीं पीना है। इसको फ़िल्टर कर के ही पीना है।  


८ .  वैसे अगर बारिश के पानी को जबरदस्ती नीचे भेजने की जगह दूसरे विधियों को अपनाया जाता तो ज्यादा प्रभावित होता।  जैसे ज्यादा से ज्यादा खुले स्थानों का होना , लोग अपने घरों के सामने के स्थान को कंक्रीट से न ढके , घांस लगाएं , नालियों को पक्का नहीं करें इत्यादि, क्योंकि छत से कई गुना अधिक बारिश का पानी  खुले स्थानों से बह के निकल जाता है। हमे इनको रोकना है।  

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