यहाँ की नदियां करोडो साल पुरानी होंगी। गंगा यमुना से भी बहुत पुरानी।
द्वारा
डा. नितीश प्रियदर्शी
भूवैज्ञानिक
आज नदियों
अस्तित्व ही खतरे में है। सब जानते हैं कि नदियों के किनारे ही अनेक मानव सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है। नदी तमाम मानव संस्कृतियों की जननी है। प्रकृति की गोद में रहने वाले हमारे पुरखे नदी-जल की अहमियत समझते थे। निश्चित ही यही कारण रहा होगा कि उन्होंने नदियों की महिमा में ग्रंथों तक की रचना कर दी और अनेक ग्रंथों-पुराणों में नदियों की महिमा का बखान कर दिया। भारत के महान पूर्वजों ने नदियों को अपनी मां और देवी स्वरूपा बताया है। नदियों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, इस सत्य को वे भली-भांति जानते थे। इसीलिए उन्होंने कई त्योहारों और मेलों की रचना ऐसी की है कि समय-समय पर समस्त भारतवासी नदी के महत्व को समझ सकें। नदियों से खुद को जोड़ सकें। नदियों के संरक्षण के लिए चिंतन कर सकें। अगर नदियां ही नहीं रहेंगी तो मानव सभ्यता ही खतरे में पद जाएगी। झारखण्ड में भी नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। नदियों का महत्व जानना हो तो इसके इतिहास को भी जानना होगा की कैसे और कब झारखण्ड में नदियां अस्तित्व में आईं। नदियों का जन्म एवं विकास एक लम्बी कहानी है। हर नदियों का अपना एक उद्गम स्थल होता है। नदी का उद्गम पहाड़, जंगल आदि क्षेत्र में होता है। इनका जन्म यकायक नहीं होता, प्रत्युत्त क्रमबद्ध विधि से अनेक जलधाराएं मिलकर एक पूर्ण विकसित सरिता का रूप लेती है। नदियों की उत्पत्ति कब हुई ये कहना बहुत मुश्किल है लेकिन संभावना व्यक्त की जा सकती है। अगर छोटानागपुर पठार की बात करे तो ये प्राचीनतम चट्टानों से निर्मित है। यहाँ के चट्टानों की आयु ६०० मिलियन वर्ष से भी अधिक है । तो यहाँ की नदियां भी करोडो साल पुरानी होंगी। गंगा यमुना से भी बहुत पुरानी। हिमालय बनने के बाद गंगा, यमुना इत्यादि नदियां अस्तित्व में आईं। झारखंड के पठार हिमालय से भी करोड़ों साल पुराने हैं। हिमालय की उत्पत्ति आज से लगभग ५० से ६० मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई जब भारतीय प्रायद्वीप तिब्बत के पठार से टकराया। जब हिमालय बन रहा था उसी वक़्त झारखण्ड में भी काफी उथलपुथल हो रहा था। वैसे हिमालये बनने के करोड़ों साल पहले भी यहाँ उथल पुथल हुआ था जिसका साक्ष्य यहाँ के चट्टानों में पड़े वलन से पता चलता है। आज से लगभग ४०० मिलियन वर्ष पहले डेवोनियन काल में झारखण्ड में दामोदर घाटी का निर्माण हुआ जहाँ से होके दामोदर नदी बहती है। इस काल को मत्स्य काल भी कहते हैं। उस वक़्त पृथ्वी पर विशाल पर्वत बनने की प्रक्रिया चल रही थी। चट्टानों में लम्बी दरारें पड़ी जो शायद आगे चल के नदियों के उद्गम में प्रमुख भूमिका निभाया। आज जो हम रांची के पठार की बनावट देख रहे हैं करोडो साल पहले ऐसी नहीं थी। ये एक बेसिन था जो बाद में सेडीमेंट्स या अवसाद से भर गया तथा बाद में एक पठार का रूप लिए और उसके बाद शायद स्वर्णरेखा, कोयल, कारो इत्यादि नदियों की उत्पत्ति हुई होगी। हिमालय बनने के दौरान यहाँ ज्यादा ही उथल पुथल
हुआ।
घाटियाँ बनी , कुछ भाग उठा तो कुछ भाग धंसा, जल प्रपात बने ।
छोटानागपुर की पठार की नदियां या तो पहाड़ से निकली जैसे दामोदर या फिर धरती के नीचे से जैसे सवर्णरेखा। दामोदर नदी छोटानागपुर की पहाड़ियों से 610 मीटर की ऊँचाई से निकलकर लगभग 290 किलोमीटर झारखण्ड में प्रवाहित होने के बाद पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर 240 किलोमीटर प्रवाहित होकर हुगली नदी में मिल जाती है। लेकिन देखा जाये तो सारी नदियां पृथ्वी के नीचे से दरारों से होती हुई ऊपर आईं। हो सकता है की कुछ छोटी नदियों की उत्पत्ति ,हिमालय बनने के दौरान हुई ।
यहाँ की सारी नदियां बारिश के जल पर ही निर्भर हैं। इतना तय है की छोटनागपुर पठार की नदियां करोड़ों साल पुरानी
हैं। हिमालय से भी करोडो साल पुरानी।