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Wednesday, January 12, 2011

मकर संक्रांति - वैज्ञानिक विवेचना .

माया सभ्यता भी मनाती थी मकर संक्रांति
द्वारा

डॉ. नितीश प्रियदर्शी





पूरा उत्तर भारत ठण्ड की चपेट में है I वैज्ञानिकों का मानना है की इस ठण्ड से निजात १४ जनवरी यानि मकर संक्रांति के बाद से ही मिल पायेगा I आखिर ऐसा क्यों? ऐसा माना जाता है की सूर्य १४ जनवरी से मकर राशी में प्रवेश करता है, यानि वह उत्तर की तरफ बढ़ेगा जिससे धीरे धीरे सूर्य की रौशनी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर सीधी पडने लगेगी I इसकी वजह से उत्तरी गोलार्ध में गर्मी का मौसम शुरू हो जायेगा तथा ठण्ड धीरे धीरे कम होने लगेगी I

पृथ्वी की कक्षा लगभग २३.५ अंश उत्तर-दक्षिण में झुकी हुई है I इसे क्रांति कहते हैं I पृथ्वी जब अपनी कक्षा पर उत्तर की ओर खिसकने लागतो है तो सूर्य दक्षिण की तरफ खिसकता नजर आता है I इसके विपरीत पृथ्वी जब दक्षिण की ओर खिसकती है तो सूर्य उत्तर की ओर खिसकता नजर आता है I यह सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन स्तिथि के अनुसार माना जाता है I इसका अर्थ यह हुआ की जब सूर्य उत्तर की ओर चलता है तो उत्तरायण, तथा जब दक्षिण की ओर चलता है तो दक्षिणायन माना जाता है I

२१ मार्च को सूर्य विषुवत रेखा के ऊपर रहता है और इस तिथि को दिन- रात बराबर होती है I इसके बाद सूर्य उत्तर की खिसकने लगता है, तथा विषुवत रेखा से उत्तर में दिन बढ़ने लगता है, और दक्षिण में घटने लगता है I २१ जून को सूर्य परम उत्तर में जाता है I फिर सूर्य दक्षिण की और खिसकने लगता है ; और विषुवत रेखा से उत्तर में दिन घटने लगता है ; और दक्षिण में बढ़ने लगता है. इसे ही दक्षिणायन कहते हैं I

वैज्ञानिक तौर पर देखा जाय तो सबसे छोटा दिन दिसम्बर २१-२२ का होता है, इसके बाद दिन क्रमशः बढ़ने लगता है I यानि उस समय से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है I यदि वैज्ञानिक तौर पर देखें तो सूर्य २१ दिसम्बर से ही उत्तरायण होने लगता है I यही असली मकर संक्रांति का दिन था I

अब प्रश्न ये उठता है की १४ जनवरी को ही क्यों हम मकर संक्रांति मनाते हैं ? इसका कारण है पृथ्वी का सूर्य की तरफ २३.४५ डिग्री का झुकाव I इसी कारण मकर संक्रांति की तिथि खिसक कर १४ जनवरी पर आ गया I ऐसी मान्यता है की हजारों साल पहले ३१ दिसम्बर को ( वर्तमान समयानुसार ) मकर संक्रांति मनाया जाता था और अब यह १४ जनवरी को I पांच हज़ार साल के बाद यह फ़रवरी के अंत में मनाया जाएगा तथा नौ हज़ार साल बाद यह जून अंत में मनाया जाएगा I यानि जैसे जैसे पृथ्वी के झुकाव के डिग्री में फर्क आएगा वैसे वैसे मकर संक्रांति के तिथि में फर्क आएगा I

हम सभी जानते हैं की पृथ्वी अपने कक्ष पर खास कोण बनाकर झुकी रहती है I यही झुकी हुई पृथ्वी जब सूर्य के चारों ओर घुमती है तब विभिन्न मौसम आते हैं I वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पृथ्वी के झुकाव के वजह से पृथ्वी के तापमान में बदलाव होता है I

उनका यह भी मानना है कि पृथ्वी का झुकाव ०.४७ इंच प्रति वर्ष के हिसाब से कम हो रहा है I किन्तु वर्तमान में झुकाव मध्यमान यानि २३.४५ डिग्री है I अथार्त, पृथ्वी का झुकाव वापस २२.५ डिग्री पर होगा I इसके फलस्वरूप सूर्य कि किरणों के प्रभाव में भी बदलाव आयेगा तथा मकर संक्रांति कि तिथि में भी फेरबदल हो सकता है I

ऐसा कहा जाता है कि संक्रांति पिछले छह हज़ार वर्षों से मनाया जा रहा है I यही नहीं लैटिन अमेरिका के प्राचीन माया सभ्यता भी इससे मिलते जुलते पर्व मानती थी I

Saturday, January 5, 2008

क्या पृथ्वी तीन मिनट मैं बनी ?



पृथ्वी क्या तीन मिनट मैं बनी
द्वारा
नीतीश प्रियदर्शी
समय पहले विश्व की प्रमुख विज्ञान पत्रिका 'नेचर' में एक शोध पत्र छपा था कि पृथ्वी को बनने में तीन मिनट से भी कम समय लगा । शोधकर्ता थे आर वी जेन्त्री। यह रिपोर्ट आने के बाद विश्व के खोजकर्ताओं में बहस चल रही है कि इस शोध पर कितना विश्वास किया जाए ।
इस शोध के बाद लोगों को कुछ धर्मों कही गई बात कि पृथ्वी तुरंत तथा आज से ६००० वर्ष पहले बनी सत्य प्रतीत होती है।
भूवैज्ञानिक मान्यता है कि पृथ्वी को वर्तमान स्वरूप में आने में करोडो वर्ष लगे। विभिन्न radioactive और कार्बन डेटिंग से यह ज्ञात हुआ है कि पृथ्वी की आयु ४.५ बिलियन वर्ष है।
जेन्त्री ने granite पत्थर में मौजूद radioactive पदार्थ पोलोनियम -२१८ को लेकर शोध किया । उनका कहना है कि पोलोनियम-२१८ कि आधी आयु (Half life) महज तीन मिनट है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह धातु कुछ ही मिनट तक विकिरण दे सकता है । अपने कम होने के दोरान यह अल्फ़ा विकिरण देता है जो बगल मे मौजूद धातु को प्रभावित करता है । धातु के चारो तरफ एक ring बन जाता है जिसको हम 'हेलोस' (प्रभामंडल) कहते हैं । उनका यह मानना है कि अगर इन छल्लो को चट्टानों मैं मौजूद रहना है तो चट्टानों को तरल से ठोस होने में तीन मिनट से भी कम समय लगना होगा नहीं तो सारे पोलोनियम-२१८ विलुप्त हो जायंगे तथा छल्लों का प्रभाव नहीं दिखेगा। अगर हम पोलोनियम-२१४ कि बात करे तो उसकी आयु महज .०००१६४ सेकंड है। अगर इनके द्वारा बनाए गए छल्ले हम चट्टानों में देखते हैं तो आप यह सहज यह अनुमान लगा सकते हैं कि चट्टानों को ठोस होने में कितना समय लगेगा । यानी एक सेकंड का हजार वां हिस्सा ।
उनका मानना है कि पोलोनियम अरबों कि संख्या में विश्व के granite चट्टानों में पाया जाता है तथा विश्व का आधा से ज्यादा हिस्सा इन चट्टानों का है। वे granite को ही धरती का मूल चट्टान मानते हैं.
कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि जेंत्री भोतिकी के जानकर हैं। उनको भूविज्ञान के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। पृथ्वी कि आयु जानने के लिये जरूरी है कि हमे चट्टानों के प्रकृति कि गहन जानकारी होनी चाहिऐ। उन्होने सिर्फ एक चीज को देखकर निष्कर्ष निकाल लिया कि पृथ्वी तीन मिनट के अन्दर बनी।
आज अगर हम देखें तो लोग विज्ञान और धर्मं को एक साथ जोड़कर देखने कि कोशिश कर रहें हैं। बात कुछ भी हो इतना जरूर है कि धर्मं और विज्ञान के बीच की लड़ाई पहले भी थी और आज भी है और कल भी रहेगा।
डाक्टर नीतिश प्रियदर्शी
भूवैज्ञानिक